Bhai Dooj 2025: तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व – भाई-बहन के प्रेम का अटूट बंधन
भाई दूज (Bhai Dooj), जिसे यम द्वितीया भी कहते हैं, दिवाली के पाँच दिवसीय महापर्व का अंतिम और सबसे खास त्योहार है। यह पर्व भाई और बहन के पवित्र रिश्ते, स्नेह और एक-दूसरे के प्रति समर्पण को दर्शाता है। इस दिन बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और सुरक्षा की कामना करती हैं, और भाई अपनी बहन को उपहार देकर उनकी रक्षा का वचन दोहराते हैं।
Bhai Dooj 2025: रात्रि और संध्या काल के शुभ योग (Late Tilak Muhurat)
भाई दूज का पर्व 23 अक्टूबर 2025 को मनाया जा रहा है और द्वितीया तिथि रात 10:46 बजे तक रहेगी। अगर आप दोपहर के मुख्य मुहूर्त में तिलक नहीं कर पाए हैं, तो इन समयों का उपयोग किया जा सकता है:
अगर आप इस साल भाई दूज की सही तारीख और शुभ मुहूर्त जानना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए है।
Bhai Dooj 2025: सही तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाई दूज का पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। चूँकि इस वर्ष (2025) द्वितीया तिथि 22 अक्टूबर की रात को शुरू हो रही है, इसलिए उदया तिथि (सूर्योदय के समय वाली तिथि) के आधार पर यह पर्व 23 अक्टूबर 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा।

| विवरण | तिथि / समय |
| भाई दूज की तिथि | 23 अक्टूबर 2025, गुरुवार |
| द्वितीया तिथि का आरंभ | 22 अक्टूबर 2025, रात 8:16 बजे |
| द्वितीया तिथि का समापन | 23 अक्टूबर 2025, रात 10:46 बजे |
| तिलक करने का शुभ मुहूर्त | दोपहर 01:13 बजे से 03:28 बजे तक |
| शुभ मुहूर्त की अवधि | लगभग 2 घंटे 15 मिनट |
ध्यान दें: इस शुभ मुहूर्त (दोपहर 01:13 बजे से 03:28 बजे तक) में तिलक करना और पूजा करना सबसे उत्तम माना गया है।
Navbharat Times रिपोर्ट्स के अनुसार भाई दूज hai 2025
भाई दूज का महत्व: क्यों मनाया जाता है यह पर्व?
Bhai Dooj का त्योहार सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि भाई-बहन के बीच मौजूद गहरे प्रेम और सुरक्षा की भावना का प्रतीक है। इसे मनाने के पीछे दो प्रमुख पौराणिक कथाएँ हैं:
- यमराज और यमुना की कथा (यम द्वितीया):पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना के घर गए थे। यमुना ने अपने भाई का आदर-सत्कार किया, उन्हें प्रेम से भोजन कराया और उनके माथे पर तिलक लगाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने यमुना को वरदान दिया कि जो भाई आज के दिन अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाएगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा और वह दीर्घायु होगा। यही कारण है कि इस पर्व को यम द्वितीया भी कहते हैं।
- श्री कृष्ण और सुभद्रा की कथा:एक अन्य मान्यता के अनुसार, राक्षस नरकासुर का वध करने के बाद, भगवान श्री कृष्ण इसी दिन अपनी बहन सुभद्रा से मिलने द्वारका पहुँचे थे। सुभद्रा ने अपने भाई का स्वागत फल, फूल, मिठाई और दीये जलाकर किया और उनके माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र की कामना की। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।





